Saturday 9 July 2011

भगवान श्री कृष्ण जी की आठ पटरानियों के अतिरिक्त सोलह हजार रानियाँ भी थीं , क्या यह सत्य है और क्या श्री कृष्ण द्वारा ऐसा करना उचित था ?

ज हमारे एक मित्र ने  इस तरह का  प्रश्न किया...... तो हम तो इसका क्या उत्तर देते लेकिन हमें अपने गुरदेव से जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसके अनुसार यहाँ लिख रहे हैं जो कुछ भी भूल हो उसके लिए आप सभी से मुकेश बिजल्वाण छमा चाहता है......श्रीमद भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध, अध्याय ६९ , श्लोक ३३ से ४२ में वेद व्यास जी ने हजारों वर्ष पूर्व , इस प्रसंग का वर्णन पूरे विस्तार के साथ किया है ,इसके अनुसार :-
भगवान श्री कृष्ण ने विलासी राजा नरकासुर (भौमासुर) को मार कर जब उसके वैभवशाली महल में प्रवेश किया तो देखा कि भौमासुर ने देश के विभिन्न राज्यों से सोलह हजार राजकुमारियों को लाकर  बंदी बना रखा है  !
भौमासुर की मृत्यु के उपरांत इन राजकुमारियों को पुनः उनके अपने  परिवारों में लौट पाना असंभव लगा ! अस्तु , अन्तःपुर में पधारे ,नर श्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण को देखते ही उन्होंने उनसे अपने जीवन एवं मान सम्मान रक्षा के लिए प्रार्थना की !श्री कृष्ण की मनोहारी छवि के दर्शन से सबकी सब उनपर मोहित हो गयीं थीं यहाँ तक क़ी  उन्होंने उनकी अहेतुकी कृपा तथा अपना परम सौभाग्य मान कर ,मन ही मन उनको अपने प्रियतम पति के रूप में वरण भी कर लिया था !(श्लोक ३१,३२,३३) ! श्री कृष्ण ने भी उन कन्याओं की जीवन रक्षा के लिए  एवं समाज में उन्हें उचित सम्मान दिलाने के लिए स्वीकार कर लिया !
तदनन्तर भगवान श्री कृष्ण ने एक ही मुहूर्त में  विभिन्न महलों में , अलग अलग रूप धारण कर के ,एक ही साथ ,उन १६००० राजकुमारियों के साथ विधिवत विवाह (पाणिग्रहण) किया  ! सर्वशक्तिमान अविनाशी भगवान  के लिए इसमें आश्चर्य क़ी कौनसी बात है ?
जब   देवर्षि  नारद ने श्रीकृष्ण क़ी इन १६००० रानियों के विषय में जाना तो उन्हें वैसी ह़ी शंका हुई जैसी की मित्र आपको या अनेक लोगों को होती होगी! वे सोचने लगे कि यह कितने आश्चर्य की बात है क़ी श्रीकृष्ण एक ही शरीर से ,एक  ह़ी समय ,एक साथ इतनी कुमारियों से ब्याह रचा सके !अब द्वारका में १६१०८ रानियों के साथ उनका वैवाहिक जीवन कितना दुखद अथवा सुखद है यह जानने की उत्सुकता लिए नारदजी  भगवान कृष्ण की गृहस्थी का दर्शन करने स्वयं द्वारका पहुँच गये !
द्वारका में जो नारद जी ने देखा ,उससे उनकी आँखें खुली क़ी खुली रह गयीं !उन्होंने देखा कि भगवान श्री कृष्ण अपनी सभी रानियों के साथ गृहस्थों को पवित्र करने वाले श्रेष्ठ धर्मों  का आचरण कर रहे हैं !यद्यपि वह एक ह़ी थे पर नारदजी ने उन्हें उनकी प्रत्येक रानी के साथ अलग अलग देखा ! उन्होंने श्रीकृष्ण की योगमाया का परम ऐश्वर्य बार बार देखा और उनकी व्यापकता का अनुभव किया !यह सब देख सुन कर नारदजी के  विस्मय और कौतूहल की सीमा नहीं  रही !
रामावतार में मर्यादा का अत्याधिक पालन करने वाले भगवान ने जहाँ एक पत्नीव्रत धर्म का पालन किया था वहाँ कृष्णावतार में उन्होंने वैसा नहीं किया ! श्री कृष्ण जी ने १६१०८ देविओं से विधिपूर्वक विवाह किया !
कुछ विद्वानों का मत है कि ,गृहस्थाश्रम धर्म का वर्णन करने वालीं, वेद की १६००० ऋचाएं ,कृष्णावतार के समय , प्रभु सेवा की भावना से राजकुमारियां बनी और अंततः श्री कृष्ण की विवाहिता पत्नियाँ हुईं !
भगवान श्रीकृष्ण जी के सम्बन्ध में जब हमने कुछ महात्माओं से पूछा तो उन्होंने सुझाव दिया कि मुकेश बिजल्वाण जी श्रीकृष्ण जी की महिमा को पूर्णतया माँ सरस्वती या वेद भी नहीं जानते फिर नर मनुष्यों की तो बात ही क्या है प्रिय पाठकों इसलिए बेहतर होगा की आप या हम श्रीमद भगवत गीता के दसवें अध्याय को पढ़ें...........क्यूंकि श्री कृष्ण भगवान जी के बारे में सिर्फ श्री कृष्ण जी ही बता सकते हैं और वो भी तब जब उन्हें अर्जुन जैसा शिष्य मिले........जय राधेगोविन्दा मित्रों........जय श्री राम..........!.......जय गोविंदा..!!!!!!!
भगवान श्रीकृष्ण जी के भक्तों की जय हो.................jsr

1 comment:

  1. श्रीमद भगवत महापुराण के तीसरे स्कन्द के बाहरवें अध्याय के श्लोक 28 से 33 के बारे में कृपया बताएं .
    कहा जाता है की ब्रह्ममा जी ने सरस्वती जी के साथ कोई अनिष्ट किया था मैं हलाकि इस बात पर विश्वास नहीं करना चाहता हूँ परन्तु कृपया विस्तार से शब्द सह बताएं.

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